Tuesday, December 29, 2009

yunhi firta rehta hu mausam-e-barsaat mein...

yunhi firta rehta hu mausam-e-barsaat mein
apni yaadon ke jazbaat mein...
sab sunte hai mooh ki baatein
koi na jaane kya beeta hai mere saath mein...
***
yunhi firta rehta hu...
***
raaton ko uth-uthkar darwaze par baith jata hu main
lagta hai jaise chand se utar raha hai woh...
sadiyon-sadiyon yunhi khojta hua
yunhi firta rehta hu mausam-e-barsaat mein
apni yaadon ke jazbaat mein...
***
woh mera aaina uski parchhai hu main
ek hi kamre mein qaid rehte hai dono
kabhi main kehta, sunti hai woh
kabhi woh kehti, sunta hu main...
yunhi firta rehta hu mausam-e-barsaat mein
apni yaadon ke jazbaat mein...
***
ghanton baitha rehta sagar kinare main
logon ko aate-jaate dekhta raha
tum nahi aaye milne mujhse
sadiyon khamosh gumsum sa raha main...
yunhi firta rehta hu mausam-e-barsaat mein
apni yaadon ke jazbaat mein...

#Romil

यूंही फिरता रहता हूं मौसम-ए-बरसात में 
अपनी यादों के जज्बात में... 
सब सुनते हैं मुंह की बातें 
कोई ना जाने क्या बीता मेरे साथ में... 

यूंही फिरता रहता हूं...

रातों को उठ-उठकर दरवाजे पर बैठ जाता हूं मैं 
लगता है जैसे चांद से उतर रहा है वो 
सदियों-सदियों यूंही खोजता हुआ 
यूंही फिरता रहता हूं मौसम-ए-बरसात में 
अपनी यादों के जज्बात में...

वो मेरा आईना उसकी परछाई हूं मैं 
एक ही कमरे में कैद रहते हैं दोनों 
कभी मैं कहता, सुनती है वो 
कभी वो कहती, सुनता हूं मैं...
यूंही फिरता रहता हूं मौसम-ए-बरसात में 
अपनी यादों के जज्बात में...

घंटों बैठा रहता सागर किनारे मैं 
लोगों को आते-जाते देखता रहा
सदियों खामोश गुमसुम सा रहा मैं...
यूंही फिरता रहता हूं मौसम-ए-बरसात में 
अपनी यादों के जज्बात में...

#रोमिल

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