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Tuesday, March 26, 2019

Zidd

ज़िद

दोनों अपनी-अपनी ज़िद पर अड़े हुए है
वो बुढ़िया कभी उठकर अंदर नहीं जाती
सुबह से लेकर शाम उसी मंदिर की सीढ़ियों पर ही है बिताती
वो पत्थर का खुदा कभी उठकर बाहर नहीं आता
ना कभी उसका हाल पूछता
ना कभी उसको समझाता।

ना जाने यह कैसी ज़िद है?

चौखट पर कोई बैठा है
और
बोलचाल भी नहीं है।

रूठी हुई, मुँह फुलाएं हुए
नाराज़ सी, खामोश सी, उदास सी
उस बुढ़िया को जब मैं देखता हूँ
यह समझ नहीं पाता 
कि जिस खुदा ने दया, उपकार, झुकना सिखाया
वो खुदा, खुद क्यों नहीं ज़िद छोड़कर मंदिर के बाहर आ जाता
उस बुढ़िया को अपने हाथों से उठाकर,
कंधों के सहारे,
मंदिर के अंदर ले जाता
अपने पास बिठाता 
उसका हाल पूछता
उसको ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा सिखाता। 

#रोमिल

Monday, March 26, 2018

हमारी उंगली साहिल पे है...

हमारी उंगली साहिल पे है... 
ज़िद है इसी की रेत पे अपना नाम लिखेंगे... 
सागर की लहरों को जो बिगाड़ना है बिगाड़ ले...

#रोमिल

Wednesday, November 30, 2011

जैसे फूल, काँटों से लिपटे-लिपटे रहते है...

वोह जिद पर अड़े-अड़े रहते है
जैसे फूल, काँटों से लिपटे-लिपटे रहते है...
*
अनबन में हम-दोनों इस तरह उलझे है
वो दूर भी रहते हैं, करीब भी रहते है...
*
हर एक बात पर जो मेरा ज़िक्र किया करते थे
वो आजकल मेरा नाम लेने से भी परहेज किया करते है...
*
उलझन है बस इस बात की दिल में रोमिल
वो देकर दर्द मुझे
क्यों इतना तन्हाई में रोते है...

#रोमिल