यूँही फिरता रहता हूँ मौसम-ए-बरसात में
अपनी यादों के जज़्बात में
सब सुनते हैं मुँह की बातें
कोइए न जाने क्या बीता हैं मेरे साथ में...
***
यूँही फिरता रहता हूँ...
***
रातों को उठ-उठ कर दरवाज़े पर बैठ जाता हूँ मैं
लगता हैं जैसे चाँद से उतर रहा हैं वो
सदियों-सदियों यूँही खोजता हुआ...
यूँही फिरता रहता हूँ मौसम-ए-बरसात में
अपनी यादों के जज़्बात में...
***
वो मेरा आइना उसकी परछाए हूँ मैं
एक ही कमरे में क़ैद रहते हैं दोनों
कभी मैं कहता, सुनती हैं वो
कभी वो कहती, सुनता हूँ मैं...
यूँही फिरता रहता हूँ मौसम-ए-बरसात में
अपनी यादों के जज़्बात में...
***
घंटों बैठा रहता सागर किनारे मैं
लोगों को आते-जाते देखता रहा
तुम नहीं आये मिलने मुझसे
सदियों खामोश गुमसुम सा रहा मैं...
यूँही फिरता रहता हूँ मौसम-ए-बरसात में
अपनी यादों के जज़्बात में...
#रोमिल
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