Monday, August 15, 2011

लोग मीलों जाकर भी नहीं भूलते हैं अपनों को

लोग मीलों जाकर भी नहीं भूलते हैं अपनों को
उसकी तरह क्या बिछड़ता हैं कोइए?
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खफा रहे वोह मुझसे कोइए गिला नहीं
कभी-कभी नज़रे तो मिला सकती हैं...
उसकी तरह क्या नज़रे फेर लेता हैं कोइए?
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हवा भी दरवाज़ा धकेल कर घर में घुस आती हैं
कभी तुम भी हवा की तरह घर में आ जाया करो
क्या इतना भी हक अपनों पर रखता नहीं कोइए?
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सुबह होते ही चिड़िया आकर बैठ गई मेरे घर की मुंडेरी पर
मैं दूर सड़क तक तुम्हारा रास्ता देखता रहा
फिर रब से बोला क्या अपने घर का रास्ता भूल जाता हैं कोइए?
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एक परेशानी रहती हैं
उलझा रहता हूँ इस बात में
आखिर क्या वजह थी जुदाई की
"उसने कहाँ था...
दौलत और जिस्म दो ही चीज़ हैं इस दुनिया में"
आओ फिर से सोच कर देखे
शायद इससे बेहतर वजह हो कोइए?
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लोग मीलों जाकर भी नहीं भूलते हैं अपनों को रोमिल
उसकी तरह क्या बिछड़ता हैं कोइए?

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