Tuesday, September 13, 2011

अक्सर...

हम रातों को शमा जलाते हैं
भूजाते हैं अक्सर...
तुम्हारे यादों में रोते हैं
मुस्कुराते हैं अक्सर...
***
यूँही कट रही हैं ज़िन्दगी अपनी
जैसे साहिल पर लोग आते हैं जाते हैं अक्सर...
***
लोग क्या जाने, क्या छुपा हैं दर्द दिल में हमारे
वोह पढ़ते हैं चहरे अक्सर...
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रास्तों पर तन्हा चलने का गम कोइए हमसे पूछे
मंजिल पर आकर, हार जाते हैं हम अक्सर...
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हम चाहते थे आसमान में लिख दे मोहब्बत-ए-दास्तान
हमारे दुश्मन बने हैं हमारे खानदानवाले अक्सर...
***
हम रातों को शमा जलाते हैं
भूजाते हैं अक्सर...
तुम्हारे यादों में रोते हैं
मुस्कुराते हैं अक्सर...

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