Monday, October 17, 2011

मैं रोज़ नए गम से मिलता हूँ...


मैं रोज़ नए गम से मिलता हूँ,
जब तक गम-ए-शमा नहीं होती, 
तब तक मैं रोशन नहीं होता हूँ.
~
मैं तो बस तनहाइयों में उस चाँद को देखा करता हूँ,
फिर न जाने क्यों, खुद पर मुस्कुराकर रोता हूँ.
~
एक आइना थी तेरे आँखें रोमिल, 
जिसमे मैं, अपना दीदार हमेशा करता था,
जबसे आइना बेवफा हो गया,
तब से हमेशा नाक़ाब में रहता हूँ.

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