Saturday, December 24, 2011

खुशबू से महक गए दिल-ए-आशियाने में एक पुराना ख़त पढ़ा अनजाने में...

खुशबू से महक गए दिल-ए-आशियाने में
एक पुराना ख़त पढ़ा अनजाने में...
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जिन ज़ख्मो को वक़्त भर चला था
वोह छिड गए अनजाने में...
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आँखों में नमी थी, हंसी थी होंठों पर
कितने खवाब मचल रहे थे अनजाने में...
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ता-उम्र ढूँढ़ते रहे इश्क दुनिया में
वीरानियाँ मिली खतों में हमे अनजाने में...
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खुशबू से महक गए दिल-ए-आशियाने में
रोमिल, एक पुराना ख़त पढ़ा अनजाने में...

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