Wednesday, November 4, 2020

दरख़्त हूँ, थोड़ा सख़्त हूँ...

दरख़्त हूँ
थोड़ा सख़्त हूँ...
हाँ, थोड़ा शख़्त हूँ...
पर तुझे छाँव दूँगा,
ठंडी-हल्की हवाओं के झोंके से तेरी सारी थकान उतार दूँगा,
आ चबूतरे पे मेरे सो जा।
आ पनाह में मेरी सो जा।
मैं तुझे सुकून-आराम दूँगा।

(२)
रोज़ सुबह,
हाथों में अख़बार को रोल किये औऱ चाय से भरा थर्मस लिए,
उसकी क़ब्र पे पहुँच जाता है।
आदत जो थी...
संग सुबह पहली चाय पीना, साथ दुनियादारी की बातें करना,
फ़िर बातें करते-करते किसी बात पर तू तू-मैं मैं कर लेना...
यूँही सुबह की रोज़ शुरुआत करना।

चिड़िया-चिड्डे की तरह चिचियाना,
ज़िंदा होने का एहसास दिलाना...

अब एक बोलता रहता है,
दूसरा क़ब्र में लेटा सुना करता है।
एक तरफ शोर है तो दूसरी तरफ़ ख़ामोशी है,
ज़िन्दगी अब सिर्फ़ आधी ज़िन्दा हैं।

#रोमिल

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