सुबह जब घर से निकलते थे, माँ का दीदार करके निकलते थे,
जब घर लौटते थे, तब माँ का दीदार होता था,
रात में सोने जाने से पहले माँ का दीदार करके सोते थे।
पहले कभी इसके सिवा कुछ करने की इच्छा नहीं हुई न ही जरूरत महसूस हुई।
अब तो मंदिर के चक्कर लगाने, पूजा-पाठ से ही फुर्सत नही मिलती।
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