Saturday, July 23, 2011

कल रात

▬▬हुकू▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬
कल रात कमरे में गया तो बैठे-बैठे कुर्सी पर सोचने लगा यह...
बिस्तर की चादर में पहले जैसी शिलवठे नहीं पड़ती
तुम्हारे टूटे हुए बाल भी कही बिस्तर पर अब नज़र नहीं आते
तकिये पर तुम्हारी लिपिस्टिक के निशाँ बिगड़ चुके हैं
अब तकिया तुम्हारे बालों के टपकते हुए पानी से भीगता भी नहीं
मेज़ पर रखा हुआ तुम्हारा चश्मा कहीं दिखाई नहीं देता अब
जग में अब कोइए पानी भर के बिस्तर के सिरहाने नहीं रखता
कई दिन से किताबों पर धूल जमा हुई हैं, अब कोइए इन किताबों के पन्ने पलटता भी नहीं
कल रात कमरे में गया तो बैठे-बैठे कुर्सी पर सोचने लगा यह...
(⁀‵⁀) .
.`⋎´

▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬[भालू]▬▬▬

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