पतझड़ के मौसम में बहारों का दिन आया...
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फिर निकले आंसू, खुशियों का पैगाम आया
मेरे अँधेरे घर में सूरज का सलाम आया...
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पूछ रहा हैं हर लम्हा मुझसे हिसाब
सूखे हुए ज़ख्म से क्यों खून आया...
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चलते रहना तो मुक़द्दर हैं मुसाफिर का
फिर ज़िन्दगी में क्यों ठराव आया...
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दिल कहता हैं, कह दूं दुनिया-ए-जहां को खुद हाफिज़ रोमिल
मगर मेरे मित्र का अभी नहीं पैगाम आया...
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बहुत दिनों के बाद तू मुझको याद आया...
पतझड़ के मौसम में बहारों का दिन आया...
बहुत दिनों के बाद तू मुझको याद आया...
पतझड़ के मौसम में बहारों का दिन आया...
#रोमिल
1 comment:
hieee,
h r u.howz exams going.well me too busy in preparaton of exams
this is dedicated to u specially,as it describes ur mhbt..
Youn to kai chehry the jinki mohabat milli mujhko
Par dil ki yeh zidd thi agar wo nhi to phir koi bhi nahi
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