Maana ki Umar ki Dehleez pe aakar tumse haar gaye hai hum...
Par Mohabbat ki Jamaat mein tumse kahi aage hai hum...
Tum aaj bhi is bhavar mein uljhi ho ki qadam uthaye ya na uthaye hum...
Kai saalon se Saagar se kinara karke Sahil pe baithe hai hum...
Saari umeedein to maine hi kar rakhi hai tumse...
kabhi wafa, kabhi haq, kabhi ishq...
Saari umeedein to maine hi kar rakhi hai tumse...
Tum mujhse koi umeed rakho, tumhare is kabil nahi hai hum...
aur
Ishq hi hoga...
Warna itne saalon se roz bewafai kaun sehta...
Na jaane kis mitti-gaare se bane hai hum...
#Romil
माना की उम्र की दहलीज पर आकर तुमसे हर गए हैं हम
पर मोहब्बत की जमात में तुमसे कहीं आगे है हम
तुम आज भी इस भवंर में उलझी हो की कदम उठाए या ना उठाएं हम
कई सालों से सागर से किनारा करके, साहिल पे बैठे हैं हम
सारी उम्मीदें तो मैंने ही कर रखी है तुमसे
कभी वफ़ा, कभी हक, कभी इश्क...
सारी उम्मीदें तो मैंने ही कर रखी है तुमसे...
तुम मुझसे कोई उम्मीद रखो, तुम्हारे इस काबिल नहीं है हम...
और
इश्क ही होगा...
वरना इतने सालों से रोज बेवफाई कौन सहता है
ना जाने किस मिट्टी-गारे से बने हैं हम...
#रोमिल
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