RADHA SOAMI JI
दोहे – संत कबीर साहिब जी
सेवक सेवा में रहें।।
सेवक सेवा में रहें, सेवक कहिये सोई।
कहे कबीर सेवा बिना, सेवक कबहू न होए।।
सेवक सेवा में रहें, अनत कहूँ नहीं जाए।
दुख सुख सिर ऊपर सहे, कहे कबीर समझायें।।
सेवक स्वामी एक मत, जो मत में मत मिल जायें।
चतुराई रीझे नहीं, रीझे मन के भायें।।
द्वार धनी के पड़ रहे, धक्का धनी का खाए।
कबहू के धनी निवाजयी, जो दर छाड़ न जाए।।
कबीर गुरू सबको चहे, गुरू को चहे न कोई।
जब लगे आस शरीर की, तब लग दास न होई।।
सेवक सेवा मे रहें, सेवा करे दिन रात।
कहे कबीर को सेवका, सनमुख न ठहरात।।
निर्बंधन बंधा रहे, बंधा निर्बन्ध होये।
कर्म करे करता नही, दास कहावे सोये।।
गुरू समरथ सिर पर खड़े, कहा कमी तोए दास।
रिद्धी सिद्धी सेवा करे, मुक्त न छाड़ पास।।
दास दुखी तो हरी दुखी, आदि अंत तेहो काल।
पलक एक में प्रगट होये, झिन में करे निहाल।।
दात धनी याचे नहीं, सेवा करे दिन रात।
कहे कबीर ता सेवक है, काल करे नहीं घात।।
सेवक सेवा में रहें, सेवक कहिये सोई।
कहे कबीर सेवा बिना, सेवक कबहू न होए।।
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