राधा स्वामी जी
हरि की वडिआई देखहु संतहु हरि निमाणिआ माणु देवाए ॥
तेरे कवन कवन गुण कहि कहि गावा तू साहिब गुणी निधाना ॥
तुमरी महिमा बरनि न साकउ तूं ठाकुर ऊच भगवाना ॥१॥
हरि की वडिआई देखहु संतहु हरि निमाणिआ माणु देवाए ॥
॥ मै हरि हरि नामु धर सोई ॥
॥ मै हरि हरि नामु धर सोई ॥
जिउ भावै तिउ राखु मेरे साहिब मै तुझ बिनु अवरु न कोई ॥१॥
हरि की वडिआई देखहु संतहु हरि निमाणिआ माणु देवाए ॥
मै ताणु दीबाणु तूहै मेरे सुआमी मै तुधु आगै अरदासि ॥
मै होरु थाउ नाही जिसु पहि करउ बेनंती मेरा दुखु सुखु तुझ ही पासि ॥२॥
हरि की वडिआई देखहु संतहु हरि निमाणिआ माणु देवाए ॥
विचे धरती विचे पाणी विचि कासट अगनि धरीजै ॥
बकरी सिंघु इकतै थाइ राखे मन हरि जपि भ्रमु भउ दूरि कीजै ॥३॥
जिउ धरती चरण तले ते ऊपरि आवै तिउ नानक साध जना जगतु आणि सभु पैरी पाए ॥४॥१॥१२॥
हरि की वडिआई देखहु संतहु हरि निमाणिआ माणु देवाए ॥
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