Sirf dikhawa hai tera yeh kehna...
Main Rab ke siwa kisi ko nahi pujti...
But-Parasti na sahi par in Jewaraton-Gehno ko to pujti hi ho...
Jism pe Ishq ka Itra lagana shayad teri shaan-o-shauqat ke khilaaf tha... Jo in Heere-Sone-Chandi ke Jevar ko naagon ki tarah liptaye rehti ho...
But-Parasti na sahi par Daulat ko to pujti hi ho...
Is Enta-mitti se bani dar-o-deewar yeh Makaan ko to pujti hi ho...
Nahi to fir aisa nahi hota tere badan se mere ishq ki khushboo mehak rahi hoti...
Sirf dikhawa hai tera...
#Romil
सिर्फ़ दिखावा है तेरा यह कहना...
मैं रब के सिवा किसी को नहीं पूजती...
बूत-परस्ती ना सही पर इन जेवरातों-गहनों को तो पूजती ही हो...
ज़िस्म पे इश्क़ का इत्र लगाना शायद तेरी शान-ओ-शौक़त के खिलाफ था... जो इन हीरे-चाँदी के जेवर को नागों की तरह लिपटाये रहती हो...
बूत-परस्ती ना सही पर दौलत को तो पूजती ही हो...
इस ईंट-मिट्टी की बनी दर-ओ-दीवार यह मकान को तो पूजती ही हो...
नही तो फिर ऐसा नही होता तेरे बदन से मेरे इश्क़ की खुशबू महक रही होती...
सिर्फ दिखावा है तेरा...
#रोमिल